आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

 

दो०- अपनें चलत न आजु लगि, अनभल काहुक कीन्ह।
केहिं अघ एकहि बार मोहि, दैअँ दुसह दुखु दीन्ह॥२०॥


अपनी चलते (जहाँ तक मेरा वश चला) मैंने आज तक कभी किसीका बुरा नहीं किया। फिर न जाने किस पाप से दैव ने मुझे एक ही साथ यह दुःसह दु:ख दिया॥२०॥


नैहर जनमु भरब बरु जाई।
जिअत न करबि सवति सेवकाई॥
अरि बस दैउ जिआवत जाही।
मरनु नीक तेहि जीवन चाही।


मैं भले ही नैहर जाकर वहीं जीवन बिता दूंगी; पर जीते-जी सौत की चाकरी नहीं करूँगी। दैव जिसको शत्रु के वश में रखकर जिलाता है, उसके लिये तो जीने की अपेक्षा मरना ही अच्छा है॥१॥


दीन बचन कह बहुबिधि रानी।
सुनि कुबरी तियमाया ठानी।
अस कस कहहु मानि मन ऊना।
सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना॥


रानी ने बहुत प्रकारके दीन वचन कहे। उन्हें सुनकर कुबरीने त्रियाचरित्र फैलाया। [वह बोली-] तुम मन में ग्लानि मानकर ऐसा क्यों कह रही हो, तुम्हारा सुख सुहाग दिन-दिन दूना होगा॥२॥


जेहिं राउर अति अनभल ताका।
सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका॥
जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि।
भूख न बासर नीद न जामिनि॥


जिसने तुम्हारी बुराई चाही है, वही परिणाम में यह (बुराईरूप) फल पायेगी। हे स्वामिनि! मैंने जब से यह कुमत सुना है, तबसे मुझे न तो दिन में कुछ भूख लगती है और न रात में नींद ही आती है॥३॥


पूँछेउँ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची।
भरत भुआल होहिं यह साँची॥
भामिनि करहु त कहौं उपाऊ।
है तुम्हरीं सेवा बस राऊ॥


मैंने ज्योतिषियोंसे पूछा, तो उन्होंने रेखा खींचकर (गणित करके अथवा निश्चयपूर्वक) कहा कि भरत राजा होंगे, यह सत्य बात है। हे भामिनि! तुम करो, तो उपाय मैं बताऊँ। राजा तुम्हारी सेवाके वशमें हैं ही॥४॥

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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना

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